दिल्ली में हुए धमाकों ने हतप्रभ कर दिया है. देश की संसद सुरक्षित नहीं, देश की राजधानी तक सुरक्षित नहीं, न ही देश के सुदूरवर्ती नगर सुरक्षित हैं. लोगों की पीड़ा और कातर क्रंदन से दहलते हुए देश वाले हम अपनी ही भर्त्सना करने के उपयुक्त हैं, जिनमें छिपे बैठे हैं हत्यारे और उन्हें चीन्ह नहीं पाते हम. आतंक का धर्म, मजहब और चेहरा न होने की बातें उछालने वाले हमारे तंत्र को क्यों नहीं दिखाई देता वह चेहरा जो सारी दुनिया को साफ़ साफ़ दीख रहा है? ग्लानि होती है स्वयं पर.ईश्वर दिवंगतों की आत्मा को सद्गति प्रदान करे व परिवारों को दारुण दुःख सहने की क्षमता.दिल्ली में रहने वाले सभी साथी अपनी व अपनों की कुशलता की सूचना दें. इसका एक कारण तो यह है कि हमारे नेता वोट बैंक की कारण नपुंसक बने बैठे है। दूसरा कारण क्या यह नहीं है कि हम सम्प्रदाय, भाषा, वर्ण में बटे है और एक सक्षम वोट बैंक नहीं बना पा रहे हैं जो एक नगण्य वोट बैंक के मुकाबले खडा रह सके!!
Thursday, September 18, 2008
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1 comment:
ghar mein baith kar yahi kar rahe hoo
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